पटना से बेंगलुरु तक विरासतों को चुनावी मुद्दा नहीं बनाए जाने से निराश हैं मतदाता और विशेषज्ञ

नयी दिल्ली/पटना, 23 अप्रैल पटना में लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए लगे एक पोस्टर में लिखा विरासत भी, विकास भी का नारा 20 वर्षीय छात्र अमन लाल को बिहार की राजधानी के साथ क्रूर मजाक लगता है जहां पिछले कुछ साल में कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किया जा चुका है। पटना कॉलेज से स्नातक कर रहे अमन इस चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे। उनका कहना है कि इस शहर में धरोहर इमारतों को बड़े स्तर पर नुकसान होने के बावजूद नेताओं और जनता के लिए यह चुनावी मुद्दा नहीं है। हालांकि, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने 2024 के चुनाव घोषणापत्र में उल्लेख किया है कि वह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर मॉडल की तर्ज पर धार्मिक और पर्यटन स्थलों का विकास करेगी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्मारकों का संरक्षण करेगी, वहीं कांग्रेस ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर एएसआई को और अधिक धन और मानव संसाधन मुहैया कराएगी। ऐसे चुनावी वादों के बावजूद दिल्ली से पटना और बेंगलुरु से मुंबई तक बड़ी संख्या में मतदाता धरोहर भवनों की बात चुनावी मुद्दे के रूप में नहीं होने पर निराश हैं। पिछले कुछ साल में पटना में कई ऐतिहासिक इमारतों को गिरा दिया गया है। इनमें एक पटना कलेक्टोरेट है जिसे 2022 में नए परिसर के निर्माण के लिए गिरा दिया गया था और कई इतिहासकारों, विद्वानों तथा शिल्पकारों ने इसकी आलोचना की थी। अमन ने कहा कि विश्व धरोहर दिवस के एक दिन बाद 19 अप्रैल को मतदान शुरू हुआ लेकिन राजनीतिक भाषणों में इसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है। दक्षिण भारत में भी लोगों के मन में इसी तरह के भाव हैं। बेंगलुरु निवासी यशस्विनी शर्मा के अनुसार चुनावी चर्चा और रैलियों के भाषणों में ऐतिहासिक इमारतों की बात कोई नहीं कर रहा। स्थापत्य संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली शर्मा ने कहा कि बेंगलुरु में पिछले कुछ सालों में ऐसे कई ऐतिहासिक स्थल अपना महत्व खो चुके हैं। वह बेंगलुरु के बीचोंबीच स्थित जनता बाजार (एशियाटिक बिल्डिंग) और 1880 के दशक में बने ऐतिहासिक देवराजा मार्केट का उदाहरण देती हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, चुनावी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ती है, और राजनेता तथा नेता इस अवसर का उपयोग हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करने और हमारे विरासत स्थलों के लिए गर्व की भावना पैदा करने के लिए कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में, वे अब तक इस अवसर का लाभ नहीं उठा रहे हैं। पुरानी दिल्ली में धरोहरों के क्षरण पर मुखर रुख रखने वाले और इनके संरक्षण की वकालत करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने कहा, धरोहरों को चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि आज विरासत या तो फैशन और स्टेटस की चीज बन गई हैं या केवल आलेखों और कहानियों में सिमट कर रह गई है।(भाषा)

पटना से बेंगलुरु तक विरासतों को चुनावी मुद्दा नहीं बनाए जाने से निराश हैं मतदाता और विशेषज्ञ
नयी दिल्ली/पटना, 23 अप्रैल पटना में लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए लगे एक पोस्टर में लिखा विरासत भी, विकास भी का नारा 20 वर्षीय छात्र अमन लाल को बिहार की राजधानी के साथ क्रूर मजाक लगता है जहां पिछले कुछ साल में कई ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किया जा चुका है। पटना कॉलेज से स्नातक कर रहे अमन इस चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे। उनका कहना है कि इस शहर में धरोहर इमारतों को बड़े स्तर पर नुकसान होने के बावजूद नेताओं और जनता के लिए यह चुनावी मुद्दा नहीं है। हालांकि, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने 2024 के चुनाव घोषणापत्र में उल्लेख किया है कि वह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर मॉडल की तर्ज पर धार्मिक और पर्यटन स्थलों का विकास करेगी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्मारकों का संरक्षण करेगी, वहीं कांग्रेस ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर एएसआई को और अधिक धन और मानव संसाधन मुहैया कराएगी। ऐसे चुनावी वादों के बावजूद दिल्ली से पटना और बेंगलुरु से मुंबई तक बड़ी संख्या में मतदाता धरोहर भवनों की बात चुनावी मुद्दे के रूप में नहीं होने पर निराश हैं। पिछले कुछ साल में पटना में कई ऐतिहासिक इमारतों को गिरा दिया गया है। इनमें एक पटना कलेक्टोरेट है जिसे 2022 में नए परिसर के निर्माण के लिए गिरा दिया गया था और कई इतिहासकारों, विद्वानों तथा शिल्पकारों ने इसकी आलोचना की थी। अमन ने कहा कि विश्व धरोहर दिवस के एक दिन बाद 19 अप्रैल को मतदान शुरू हुआ लेकिन राजनीतिक भाषणों में इसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है। दक्षिण भारत में भी लोगों के मन में इसी तरह के भाव हैं। बेंगलुरु निवासी यशस्विनी शर्मा के अनुसार चुनावी चर्चा और रैलियों के भाषणों में ऐतिहासिक इमारतों की बात कोई नहीं कर रहा। स्थापत्य संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली शर्मा ने कहा कि बेंगलुरु में पिछले कुछ सालों में ऐसे कई ऐतिहासिक स्थल अपना महत्व खो चुके हैं। वह बेंगलुरु के बीचोंबीच स्थित जनता बाजार (एशियाटिक बिल्डिंग) और 1880 के दशक में बने ऐतिहासिक देवराजा मार्केट का उदाहरण देती हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, चुनावी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ती है, और राजनेता तथा नेता इस अवसर का उपयोग हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के बारे में अधिक जागरूकता पैदा करने और हमारे विरासत स्थलों के लिए गर्व की भावना पैदा करने के लिए कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में, वे अब तक इस अवसर का लाभ नहीं उठा रहे हैं। पुरानी दिल्ली में धरोहरों के क्षरण पर मुखर रुख रखने वाले और इनके संरक्षण की वकालत करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने कहा, धरोहरों को चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि आज विरासत या तो फैशन और स्टेटस की चीज बन गई हैं या केवल आलेखों और कहानियों में सिमट कर रह गई है।(भाषा)